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मुस्लिम देशों की प्राचीन तकनीक: जल संकट और खाद्य सुरक्षा का समाधान

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जल संकट और खेती का भविष्य

आज के दौर में भोजन और पानी की उपलब्धता मानव जीवन के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जलवायु परिवर्तन और बढ़ते जल संकट के कारण खेती करना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने प्राचीन जल संरक्षण तकनीकों का अध्ययन किया है, जो जल और खाद्य सुरक्षा के लिए नए अवसर प्रदान कर सकती हैं।


मुस्लिम देशों की प्राचीन तकनीक पर शोध

अरब देशों के रेगिस्तानी इलाकों में खेती की जो पद्धतियां सदियों पहले इस्तेमाल की जाती थीं, वे आज के समय में भी कारगर साबित हो सकती हैं। इजरायल के शोधकर्ताओं ने इन तकनीकों का अध्ययन किया है और पाया है कि इनसे रेगिस्तानी इलाकों में भी खेती करना संभव था।

यरूशलम पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, बार-इलान यूनिवर्सिटी और इजरायल एंटिक्विटीज अथॉरिटी के वैज्ञानिकों ने ईरान, गाजा, मिस्र, अल्जीरिया और इबेरिया की प्राचीन जल प्रबंधन प्रणालियों का अध्ययन किया। ये प्रणालियां 9वीं से 12वीं शताब्दी के बीच विकसित की गई थीं।


कैसे होती थी जल संरक्षण की प्रक्रिया?

इन प्राचीन तकनीकों में:

  1. बारिश के पानी का संग्रहण:
    रेगिस्तानी इलाकों में जमीन में गड्ढे बनाकर बारिश का पानी इकट्ठा किया जाता था। इससे मिट्टी में नमी बनी रहती थी।
  2. जैविक पदार्थ का उपयोग:
    पानी भरने के बाद इन गड्ढों में जैविक पदार्थ, जैसे कचरा और खाद, डाला जाता था। इससे मिट्टी उपजाऊ हो जाती थी।
  3. फसलों की खेती:
    उपजाऊ मिट्टी में सब्जियां, तरबूज, खजूर और अंगूर जैसी फसलें उगाई जाती थीं।

कम पानी में टिकाऊ खेती का समाधान

वैज्ञानिकों का मानना है कि इन तकनीकों से वर्तमान जल संकट और खाद्य असुरक्षा जैसी समस्याओं को हल किया जा सकता है। प्राचीन पद्धतियां न केवल कम पानी में खेती को संभव बनाती हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में भी मददगार हैं।


आधुनिक युग में प्राचीन पद्धतियों का महत्व

जलवायु परिवर्तन के इस दौर में, जब पानी की कमी बढ़ रही है और खाद्य उत्पादन पर संकट मंडरा रहा है, मुस्लिम देशों की यह प्राचीन तकनीक एक आदर्श समाधान हो सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन तरीकों को आधुनिक तकनीक के साथ मिलाकर इस्तेमाल करने से कृषि क्षेत्र में बड़ा बदलाव आ सकता है।