कृषि क्षेत्र में संकट

कृषि क्षेत्र में संकट
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आरती कश्यप

कृषि क्षेत्र में संकट: कारण, प्रभाव और समाधान

भारत का कृषि क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। कृषि न केवल देश की अधिकांश जनसंख्या को रोजगार प्रदान करता है, बल्कि यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि, पिछले कुछ दशकों में कृषि क्षेत्र में कई प्रकार के संकटों का सामना किया गया है, जिनका असर देश के किसानों और समग्र अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। जलवायु परिवर्तन, खराब नीति-निर्माण, आर्थिक असमर्थन और अन्य कारणों के चलते कृषि क्षेत्र संकटग्रस्त हो गया है, और इससे देश की खाद्य सुरक्षा और किसानों की आय पर प्रतिकूल असर पड़ा है।

कृषि संकट के कारण:

  1. जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएँ: जलवायु परिवर्तन कृषि क्षेत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। असमय वर्षा, बेमौसम बारिश, सूखा, और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ फसलों को भारी नुकसान पहुंचाती हैं। भारत में खासकर किसानों को इन समस्याओं से जूझना पड़ता है, क्योंकि अधिकांश किसान पारंपरिक कृषि विधियों पर निर्भर हैं, जिनमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने और उनसे निपटने की क्षमता कम होती है।
  2. किसानों की घटती आय: किसानों की आय में लगातार गिरावट आ रही है, जो कृषि संकट का एक और प्रमुख कारण है। खेती के खर्चे बढ़ रहे हैं, लेकिन फसलों के उचित मूल्य का न मिलना किसानों के लिए बड़ी समस्या बन चुका है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और सरकारी खरीद की प्रक्रिया में भी सुधार की आवश्यकता है ताकि किसानों को उनकी फसलों का सही मूल्य मिल सके।
  3. अधूरी या गलत नीतियाँ: भारत में कृषि क्षेत्र को समर्थन देने वाली नीतियाँ अक्सर सही तरीके से लागू नहीं हो पाती हैं। सरकार की नीतियाँ कृषि विकास के लिए पर्याप्त नहीं हैं। किसानों के लिए कर्जमाफी, बीमा, सिंचाई सुविधाएँ और तकनीकी सहायता में अक्सर कमियाँ रहती हैं। इसके अलावा, कृषि विपणन व्यवस्था भी जटिल और असंगठित है, जिससे किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है।
  4. जल संकट और संसाधनों की कमी: भारत में जलसंसाधनों की भारी कमी हो रही है, जिससे सिंचाई की समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। पानी की उपलब्धता कम होने के कारण खेतों की सिंचाई ठीक से नहीं हो पा रही है, और फसलों का उत्पादन प्रभावित हो रहा है। इसके अलावा, कई राज्यों में जलाशयों और नदियों के सूखने से भी संकट बढ़ा है।
  5. प्रौद्योगिकी का अभाव: भारत के अधिकांश किसान पुराने तरीकों से खेती करते हैं, जबकि कृषि क्षेत्र में तकनीकी विकास और नवाचार की आवश्यकता है। नई कृषि तकनीकों का उपयोग न होने के कारण किसानों को अधिक उत्पादन प्राप्त करने में कठिनाई होती है। किसान अभी भी पारंपरिक विधियों और उपकरणों पर निर्भर रहते हैं, जिनसे उत्पादन में गिरावट आती है।
  6. मूल्य वृद्धि और महंगाई: कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियाँ जैसे बीज, खाद, कीटनाशक, और ईंधन की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे किसानों के लिए खेती करना कठिन होता जा रहा है। इसके अलावा, बाजार में दामों का उतार-चढ़ाव भी किसानों की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक असर डालता है।

कृषि संकट के प्रभाव:

  1. किसानों की आत्महत्या: कृषि संकट का सबसे दुखद परिणाम किसानों की आत्महत्या के रूप में सामने आया है। खराब मौसम, कर्ज, और फसलों की असफलता के कारण कई किसान मानसिक तनाव का शिकार हो जाते हैं और अंततः आत्महत्या का कदम उठाते हैं। यह एक गंभीर सामाजिक समस्या बन गई है, जो भारत की कृषि व्यवस्था पर सवाल उठाती है।
  2. खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव: कृषि संकट का एक और गंभीर असर देश की खाद्य सुरक्षा पर पड़ता है। यदि कृषि क्षेत्र में उत्पादन कम होता है, तो यह देश की खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित करता है। खाद्यान्न की कमी होने पर खाद्य कीमतों में वृद्धि होती है, जिससे आम नागरिकों को महंगाई का सामना करना पड़ता है।
  3. आर्थिक असंतुलन: कृषि क्षेत्र की विफलता से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ता है। जब कृषि संकट होता है, तो किसानों की आय घट जाती है, जिसके परिणामस्वरूप वे अन्य क्षेत्रों से उत्पादों और सेवाओं का उपभोग करने में सक्षम नहीं होते। इससे व्यापक आर्थिक असंतुलन पैदा होता है।
  4. पर्यावरणीय संकट: कृषि संकट से पर्यावरणीय संकट भी जुड़ा हुआ है। अधिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग, भूमि की जुताई और जल स्रोतों का अत्यधिक दोहन पर्यावरणीय असंतुलन को बढ़ावा देते हैं।

समाधान और संभावनाएँ:

  1. सिंचाई प्रणाली में सुधार: जल संकट को हल करने के लिए सिंचाई की नई और उन्नत तकनीकों को अपनाना जरूरी है। ‘माइक्रो-इरिगेशन’, ‘ड्रिप इरिगेशन’ जैसी तकनीकों से पानी की बचत हो सकती है और किसानों को बेहतर फसल उत्पादन मिल सकता है।
  2. कृषि विपणन सुधार: कृषि विपणन प्रणाली को व्यवस्थित और डिजिटल बनाना आवश्यक है। किसानों को उनकी फसलों के लिए सही कीमत मिल सके, इसके लिए ‘ई-नाम’ जैसी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को बढ़ावा दिया जा सकता है, जहां किसान सीधे उपभोक्ताओं और व्यापारियों से जुड़ सकते हैं।
  3. कृषि बीमा योजनाएँ: किसानों को प्राकृतिक आपदाओं और फसलों की असफलता से बचाने के लिए कृषि बीमा योजनाओं को बढ़ावा देना चाहिए। इसके तहत किसानों को फसल बीमा और प्राकृतिक आपदा के समय राहत मिलनी चाहिए।
  4. प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल: कृषि में तकनीकी नवाचारों को अपनाना किसानों के लिए लाभकारी हो सकता है। स्मार्ट खेती, जीआईएस और ड्रोन तकनीक से खेती में सुधार लाया जा सकता है। इसके अलावा, किसानों को उन्नत बीज, खाद, और उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए।
  5. कर्ज़माफी और वित्तीय सहायता: किसानों को कम ब्याज दरों पर कर्ज़ और वित्तीय सहायता प्रदान करना जरूरी है। सरकार को ऐसी योजनाओं का गठन करना चाहिए, जिससे किसानों को उनके ऋण चुकता करने में सहायता मिल सके।

निष्कर्ष:

कृषि क्षेत्र में संकट एक जटिल और बहुआयामी समस्या है, जो केवल किसानों और कृषि क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि समग्र अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित करती है। इस संकट को हल करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सरकार, समाज और किसान सभी की सक्रिय भागीदारी हो। कृषि क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिए नीतियों में सुधार, तकनीकी नवाचार और संसाधनों का सही इस्तेमाल जरूरी है।