ऑनलाइन गेमिंग पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

ऑनलाइन गेमिंग पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
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आरती कश्यप

ऑनलाइन गेमिंग पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: एक गहरी सोच

ऑनलाइन गेमिंग आज के डिजिटल युग में एक बड़े उद्योग के रूप में उभरा है, जिसे न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में एक बड़े स्तर पर अपनाया गया है। मोबाइल ऐप्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर विभिन्न प्रकार के खेल जैसे रियल मनी गेम्स, कौशल आधारित गेम्स, और कैसिनो गेम्स का खेलना अब आम हो चुका है। लेकिन इन खेलों पर कुछ कानूनी और सामाजिक सवाल भी उठते रहे हैं, जिनके जवाब में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:

सुप्रीम कोर्ट ने ऑनलाइन गेमिंग और उससे जुड़े विवादों पर हाल ही में अपनी टिप्पणियों में यह स्पष्ट किया है कि ऑनलाइन गेमिंग को केवल एक मनोरंजन के रूप में ही नहीं देखा जा सकता है, बल्कि इसमें आर्थिक और कानूनी पहलुओं की भी जांच की आवश्यकता है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि यदि कोई खेल कौशल पर आधारित है, तो उसे जुआ नहीं माना जा सकता, लेकिन अगर उस खेल में रैंडम फैक्टर या शुद्ध किस्मत का प्रभाव है, तो उसे जुए के तौर पर देखा जा सकता है, जो भारतीय कानून के तहत अवैध हो सकता है।

कौशल और किस्मत का अंतर:

सुप्रीम कोर्ट की राय में, कौशल आधारित गेम और किस्मत पर निर्भर खेल के बीच अंतर को समझना बेहद जरूरी है। कौशल आधारित गेम्स, जैसे कि शतरंज, रेट्रो गेम्स, और कुछ अन्य खेल, जहां खिलाड़ियों की रणनीति और बुद्धिमत्ता का योगदान प्रमुख होता है, उन्हें कानूनी रूप से स्वीकार किया जा सकता है। वहीं, यदि खेल में केवल किस्मत का ही रोल हो, जैसे लॉटरी और कैसिनो गेम्स, तो वह जुआ कानून के अंतर्गत आता है और उस पर सख्ती बरतने की जरूरत है।

ऑनलाइन गेमिंग पर कानूनी दृषटिकोन:

भारत में ऑनलाइन गेमिंग से जुड़े कानून राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। विभिन्न राज्यों में ऑनलाइन गेमिंग को लेकर अलग-अलग नियम हैं। कुछ राज्य इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित करते हैं, तो कुछ इसे नियंत्रित और रेगुलेट करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को स्पष्ट किया है कि राज्य सरकारों को इस पर अपना कानून बनाते वक्त यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके निर्णय में राष्ट्रीय सुरक्षा, बच्चों की सुरक्षा और सामाजिक दुष्प्रभावों को ध्यान में रखा जाए।

सुरक्षा और बच्चों की सुरक्षा:

ऑनलाइन गेमिंग में अक्सर युवा और बच्चे शामिल होते हैं, और यह एक बड़ा सामाजिक मुद्दा बन चुका है। खेलों में वित्तीय अनुशासन, मानसिक दबाव और समय की बर्बादी जैसे पहलू बच्चों और युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर भी विचार किया है और सिफारिश की है कि खेलों के निर्माण और प्रमोशन में यह सुनिश्चित किया जाए कि बच्चों और युवाओं को किसी तरह की हानि न हो। इसके साथ ही, ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफार्म्स को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे बच्चों को किसी भी प्रकार की लत या जोखिम में न डालें।

निष्कर्ष:

ऑनलाइन गेमिंग पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न केवल इस उद्योग के कानूनी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है, बल्कि समाज में इसके सामाजिक प्रभावों और सुरक्षा के मुद्दों पर भी विचार करता है। यह टिप्पणी निश्चित रूप से गेमिंग इंडस्ट्री और नीति निर्माताओं के लिए एक मार्गदर्शन के रूप में काम करेगी। गेमिंग के सभी पहलुओं को सही तरीके से नियंत्रित करना और इसे जिम्मेदारी से प्रमोट करना जरूरी है, ताकि यह मनोरंजन के रूप में सुरक्षित रहे और समाज पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़े।