अपराधराज्यों से

दहेज प्रताड़ना और आत्महत्या: ऋषि त्रिवेदी और अतुल की दर्दभरी कहानी

Spread the love

आत्महत्या के बाद शुरू हुआ दहेज का मुकदमा

दहेज प्रताड़ना और आत्महत्या की घटनाएं हमारे समाज में एक गहरी समस्या बन चुकी हैं। ऐसी ही एक घटना ने कानपुर में ऋषि त्रिवेदी और अतुल की कहानियों को उजागर किया है। दोनों मामलों में परिवारों का दर्द और समाज में दहेज प्रथा के काले सच ने सभी को झकझोर कर रख दिया है।

ऋषि त्रिवेदी की दर्दभरी दास्तान

ऋषि त्रिवेदी, एक होनहार युवक, जिन्होंने अपनी शादीशुदा जिंदगी में मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का सामना किया। उनके भाई ओमजी त्रिवेदी ने आज तक के स्टूडियो में बताया कि ऋषि को उनकी पत्नी ने दहेज के नाम पर लगातार प्रताड़ित किया। इन सभी अत्याचारों ने ऋषि को इस हद तक तोड़ दिया कि उन्होंने आत्महत्या का कदम उठा लिया।

दहेज का मुकदमा और परिवार की व्यथा

ऋषि की आत्महत्या के दो महीने बाद, उनके परिवार के खिलाफ दहेज का मुकदमा दायर किया गया। परिवार का कहना है कि यह मुकदमा झूठे आरोपों पर आधारित है। उनका दावा है कि ऋषि ने अपनी पत्नी के अत्याचारों से तंग आकर आत्महत्या की।

अतुल की कहानी: एक और पीड़ादायक उदाहरण

ऋषि की तरह ही अतुल की कहानी भी उतनी ही दर्दनाक है। अतुल ने भी अपनी पत्नी की प्रताड़ना और ब्लैकमेलिंग का शिकार होकर आत्महत्या की। अतुल के परिवार ने आरोप लगाया है कि उनकी पत्नी ने उन्हें मानसिक तनाव में डाल दिया था, जिससे वह यह कदम उठाने को मजबूर हो गए।

समाज में बढ़ती दहेज प्रताड़ना

दहेज प्रताड़ना का यह मुद्दा केवल कानूनी या सामाजिक समस्या नहीं है, बल्कि यह हमारी मानसिकता का भी हिस्सा बन चुका है। शादी के बाद महिलाओं और पुरुषों दोनों पर दहेज के नाम पर दबाव डालना और झूठे आरोप लगाना एक आम चलन बनता जा रहा है।

परिवारों की अपील

ऋषि और अतुल के परिवारों ने न्याय की गुहार लगाई है। उन्होंने सरकार और न्यायालय से अपील की है कि इस प्रकार के झूठे मुकदमों और प्रताड़ना से पीड़ित परिवारों की मदद के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।

दहेज कानूनों का दुरुपयोग

विशेषज्ञों का मानना है कि दहेज के खिलाफ बने कानून का कई बार गलत उपयोग किया जाता है। इसका सबसे बड़ा असर उन निर्दोष परिवारों पर पड़ता है, जो झूठे आरोपों के कारण सामाजिक और कानूनी परेशानियों का सामना करते हैं।

आत्महत्या रोकने के लिए समाज की जिम्मेदारी

आत्महत्या जैसे मामलों को रोकने के लिए समाज को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। यह जरूरी है कि हम मानसिक स्वास्थ्य और पारिवारिक समस्याओं को हल्के में न लें। साथ ही, दहेज जैसी कुप्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं।