मुसलमानों को मिली है छोटी बच्चियों से शादी करने की इजाजत, मुफ्ती तारिक मसूद का वीडियो वायरल, सुन लीजिए
एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें मुफ्ती तारिक मसूद के बयान को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। इस वीडियो में मुफ्ती मसूद ने एक विवादास्पद बयान दिया है, जिसमें उन्होंने मुसलमानों को छोटी बच्चियों से शादी करने की इजाजत देने का दावा किया। उनके इस बयान के बाद से पूरे देश में तूल पकड़ा है, और इसे लेकर लोगों में गहरी नाराजगी और आलोचना का माहौल बन गया है।
वायरल वीडियो में क्या कहा था मुफ्ती तारिक मसूद ने?
वीडियो में मुफ्ती तारिक मसूद ने एक धार्मिक आयोजन के दौरान अपने बयान में कहा कि इस्लाम में छोटी बच्चियों से शादी करने को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है। उनके मुताबिक, “अगर लड़की शारीरिक रूप से परिपक्व हो जाती है, तो उसे शादी के लिए सक्षम माना जा सकता है।” इस बयान के बाद से सोशल मीडिया पर लोग उनसे सवाल पूछ रहे हैं और यह चर्चा का विषय बन गया है।
मुफ्ती मसूद के इस विवादास्पद बयान को लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आई हैं। एक ओर जहां उनके समर्थक इसे धार्मिक दृष्टिकोण से सही मानते हैं, वहीं दूसरी ओर इस बयान को लेकर विरोध भी बढ़ता जा रहा है। कई लोग इसे बच्चों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के खिलाफ मानते हुए आलोचना कर रहे हैं, और इसे बाल विवाह को बढ़ावा देने के रूप में देख रहे हैं।
समाज में प्रतिक्रिया और विवाद
मुफ्ती के बयान के बाद सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाएं आना शुरू हो गई हैं। विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं, महिला अधिकारों के समूहों और बाल अधिकार संगठनों ने इस बयान की तीखी आलोचना की है। उनका कहना है कि यह बयान बाल विवाह को बढ़ावा देने जैसा है, जो पूरी तरह से भारत के कानूनों और संविधान के खिलाफ है।
भारत में बाल विवाह पर सख्त कानून
भारत में बाल विवाह को लेकर सख्त कानून हैं। भारतीय सरकार ने 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों से शादी करने को अवैध घोषित किया है। इस कानून का उद्देश्य बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा करना है, ताकि उन्हें शिक्षा, शारीरिक और मानसिक विकास के लिए उचित अवसर मिल सकें। बाल विवाह के मामलों में जुर्माना और सजा का प्रावधान भी है। ऐसे में मुफ्ती मसूद का यह बयान सीधे तौर पर भारतीय कानूनी प्रणाली और समाज के मूल्यों के खिलाफ है।
मुफ्ती मसूद का बचाव
हालांकि, कुछ लोगों ने मुफ्ती मसूद का बचाव भी किया है। उनका कहना है कि इस्लाम में इस तरह के विषयों को विभिन्न समयों और सांस्कृतिक संदर्भों में देखा जाता है, और शायद मुफ्ती मसूद ने उसी संदर्भ में बात की होगी। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इस्लामिक कानून या धार्मिक विचारों को समाज के मौजूदा कानूनी ढांचे और मानवाधिकारों के अनुसार नहीं लिया जा सकता।