दाह संस्कार के बाद नहीं जलते दांत: जानिए इस रहस्य के पीछे का कारण
जीवन और मृत्यु का कठोर सत्य
जीवन का सबसे बड़ा और अटल सत्य है मृत्यु। श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है कि जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित है। इस सत्य को स्वीकार करना मुश्किल होता है, खासकर जब कोई अपना हमें छोड़कर चला जाता है। सनातन धर्म में मृत्यु के बाद व्यक्ति का दाह संस्कार किया जाता है, जिससे शरीर अग्नि के जरिए पंचतत्व में विलीन हो जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शरीर का एक अंग ऐसा भी है, जो दाह संस्कार के दौरान भी नहीं जलता?
कौन सा अंग नहीं जलता और क्यों?
दाह संस्कार के दौरान शरीर हड्डियों सहित पूरी तरह राख में बदल जाता है, लेकिन दांत जलने से बच जाते हैं। इसका कारण दांतों की संरचना है। दांत मुख्य रूप से कैल्शियम फॉस्फेट से बने होते हैं, जो बेहद मजबूत और आग-प्रतिरोधी पदार्थ है।
जब दाह संस्कार किया जाता है, तो चिता की आग का तापमान लगभग 1292 डिग्री फ़ारेनहाइट तक पहुंचता है। इतनी भीषण गर्मी में त्वचा, नसें और हड्डियां भी जलकर राख बन जाती हैं। हालांकि, दांत के भीतर मौजूद तामचीनी (enamel) नामक पदार्थ इतना कठोर होता है कि यह आग में भी नहीं जलता। यही वजह है कि दाह संस्कार के बाद दांत अक्सर बच जाते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: दांत का तामचीनी हिस्सा क्यों बचता है?
दांत के ऊपरी परत को तामचीनी (enamel) कहा जाता है, जो मानव शरीर का सबसे कठोर हिस्सा होता है। यह परत कैल्शियम फॉस्फेट और अन्य खनिजों से बनी होती है, जो इसे अत्यधिक तापमान सहन करने में सक्षम बनाती है।
दांत का नरम हिस्सा, जैसे पल्प और डेंटिन, आग में जल सकता है, लेकिन तामचीनी आग के संपर्क में आने के बावजूद नहीं जलती। यही कारण है कि दाह संस्कार के बाद भी दांत का सख्त हिस्सा बचा रहता है।
दाह संस्कार के बाद दांतों का क्या किया जाता है?
सनातन परंपरा में दाह संस्कार के दो दिन बाद अस्थियों को एकत्रित करने की प्रक्रिया होती है। इस दौरान बची हुई हड्डियां और दांतों के टुकड़े भी शामिल होते हैं। इन्हें विधिपूर्वक गंगा नदी या किसी अन्य पवित्र नदी में प्रवाहित किया जाता है।
यह प्रक्रिया व्यक्ति की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से मृत आत्मा को श्रीहरि के चरणों में स्थान मिलता है।
धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का संगम
दाह संस्कार से जुड़ी यह जानकारी धार्मिक मान्यताओं और वैज्ञानिक तथ्यों का अनूठा संगम है। जहां धार्मिक दृष्टिकोण आत्मा की शांति पर केंद्रित है, वहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण दांत की संरचना और उसकी कठोरता को स्पष्ट करता है।
निष्कर्ष
दाह संस्कार से जुड़ी परंपराएं और उनके पीछे छिपे तथ्य हमें जीवन और मृत्यु के गहरे अर्थों को समझने का मौका देते हैं। दांत का न जलना एक छोटा सा रहस्य है, जो हमारी परंपराओं और विज्ञान के बीच के संबंध को दर्शाता है।