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सच के साथी सीनियर्स: जमशेदपुर और रांची के लोगों को फैक्ट चेकिंग की ट्रेनिंग, डीपफेक वीडियो को लेकर किया जागरूक

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झारखंड के जमशेदपुर और रांची शहरों में सीनियर नागरिकों के लिए एक महत्वपूर्ण पहल की गई है। “सच के साथी” नामक कार्यक्रम के तहत इन शहरों के नागरिकों को फैक्ट चेकिंग और डीपफेक वीडियो के बारे में जागरूक किया गया। इस ट्रेनिंग का उद्देश्य सोशल मीडिया पर फैलने वाली गलत सूचनाओं और डीपफेक वीडियो की पहचान करने में मदद करना है, ताकि लोग सही जानकारी को पहचान सकें और झूठी खबरों से बच सकें।

सच के साथी का उद्देश्य

“सच के साथी” एक विशेष कार्यक्रम है, जिसे वरिष्ठ नागरिकों के बीच फैक्ट चेकिंग की महत्वपूर्ण समझ को बढ़ाने के लिए आयोजित किया गया है। इस पहल के माध्यम से उन्हें सोशल मीडिया और इंटरनेट पर फैलने वाली गलत सूचनाओं, अफवाहों और डीपफेक वीडियो के बारे में समझाया गया। कार्यक्रम में विशेष रूप से यह बताया गया कि कैसे किसी वीडियो या सूचना के सही होने का सत्यापन किया जा सकता है और किन-किन तरीकों से गलत जानकारी को पहचान सकते हैं।

डीपफेक वीडियो का खतरनाक प्रभाव

कार्यक्रम के दौरान प्रशिक्षकों ने बताया कि डीपफेक वीडियो, जो तकनीकी रूप से संशोधित वीडियो होते हैं, इन दिनों काफी तेजी से फैल रहे हैं। इन वीडियो के जरिए गलत संदेश और अफवाहें फैलाना अब एक सामान्य घटना बन चुकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन डीपफेक वीडियो का इस्तेमाल कभी-कभी राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जिससे समाज में भ्रम और अव्यवस्था पैदा होती है।

फैक्ट चेकिंग और मीडिया साक्षरता

ट्रेनिंग सत्र में लोगों को यह सिखाया गया कि वे किसी भी वीडियो या समाचार की विश्वसनीयता कैसे जांच सकते हैं। फैक्ट चेकिंग के सरल तरीकों, जैसे कि “रिवर्स इमेज सर्च” और “डेटा बेस सत्यापन” जैसी तकनीकों के बारे में जानकारी दी गई। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे संदेशों की वास्तविकता को कैसे परखा जा सकता है, इस पर भी चर्चा की गई।

सीनियर नागरिकों की भागीदारी

सच के साथी के इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में जमशेदपुर और रांची के कई सीनियर नागरिकों ने उत्साह के साथ भाग लिया। इस पहल को लेकर कई सीनियर नागरिकों ने अपनी चिंता व्यक्त की कि वे अक्सर सोशल मीडिया पर अफवाहों का शिकार हो जाते हैं और डीपफेक वीडियो देखकर भ्रमित हो जाते हैं। ट्रेनिंग से उन्हें यह एहसास हुआ कि वे अब इस तरह की सूचनाओं को पहचानने में सक्षम हो सकते हैं और सही जानकारी को फैलाने में मदद कर सकते हैं।

उम्मीद का रास्ता

कार्यक्रम के आयोजकों का मानना है कि इस तरह की पहल से लोगों में मीडिया साक्षरता बढ़ेगी और वे फैक्ट चेकिंग को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएंगे। इसके अलावा, सीनियर नागरिकों के लिए यह ट्रेनिंग काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे अक्सर इंटरनेट और सोशल मीडिया के बारे में कम जानते हैं, जिससे उन्हें गलत जानकारी का शिकार होने का खतरा रहता है।