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‘धर्माचार्यों को निर्देश देने वाले वो कौन होते हैं’ – रामभद्राचार्य का मोहन भागवत के बयान पर तीखा जवाब

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मोहन भागवत के बयान पर रामभद्राचार्य का तीखा जवाब

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान पर धर्माचार्य रामभद्राचार्य ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। रामभद्राचार्य ने सवाल किया, “धर्माचार्यों को निर्देश देने वाले वो कौन होते हैं?” उनका यह बयान हिंदू धर्म के नेतृत्व और उसके स्वरूप को लेकर नई बहस छेड़ रहा है।

क्या कहा मोहन भागवत ने?

RSS प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में एक कार्यक्रम में हिंदू धर्म के धर्माचार्यों को आधुनिक समस्याओं और समाज सुधार के लिए जिम्मेदारी लेने का सुझाव दिया था। उन्होंने कहा कि धर्माचार्यों को समाज में नई सोच और सकारात्मक बदलाव के लिए मार्गदर्शन करना चाहिए।

रामभद्राचार्य की आपत्ति

रामभद्राचार्य ने मोहन भागवत के इस बयान पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, “धर्माचार्य स्वयं धर्म और समाज की जिम्मेदारी संभालते हैं। उन्हें निर्देश देने का अधिकार किसी और को नहीं है। धर्माचार्यों का काम धर्म के सिद्धांतों पर आधारित होता है, न कि बाहरी निर्देशों पर।”

धर्म और राजनीति का टकराव

रामभद्राचार्य का बयान हिंदू धर्म के नेतृत्व और राजनीति के बीच बढ़ते टकराव को उजागर करता है। उन्होंने कहा, “मुझे सर्वाधिक आपत्ति इस बात से है कि पहले राजनीति से प्रेरित निर्देश दिए जाते हैं और अब धर्माचार्यों को भी उसमें शामिल किया जा रहा है। यह सही नहीं है।”

समाज में उठे सवाल

रामभद्राचार्य के इस बयान के बाद हिंदू समाज में कई सवाल खड़े हो गए हैं। क्या धर्म और राजनीति को अलग रखना चाहिए? क्या धार्मिक नेताओं को सामाजिक बदलाव के लिए राजनीति से जुड़े निर्देश मानने चाहिए?

विवाद के पीछे की असल वजह

विशेषज्ञों का मानना है कि इस विवाद का केंद्र हिंदू धर्म के नेतृत्व को लेकर है। RSS जैसे संगठनों का उद्देश्य धर्म और समाज को एक साथ लेकर चलना है, जबकि धर्माचार्य इस स्वतंत्रता को बनाए रखना चाहते हैं।

सोशल मीडिया पर चर्चा

रामभद्राचार्य और मोहन भागवत के इस विवाद ने सोशल मीडिया पर भी जोर पकड़ लिया है। जहां एक ओर लोग रामभद्राचार्य के पक्ष में हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ मोहन भागवत के विचारों का समर्थन कर रहे हैं।

निष्कर्ष

यह विवाद हिंदू धर्म के भीतर नेतृत्व और अधिकार को लेकर महत्वपूर्ण सवाल उठाता है। धर्माचार्य और राजनीतिक संगठन, दोनों ही समाज को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनके अधिकारों और कर्तव्यों की सीमाओं पर स्पष्टता जरूरी है। क्या यह संवाद हिंदू धर्म को और मजबूत बनाएगा या इसमें और दरार पैदा करेगा, यह देखने वाली बात होगी।