ऑस्कर 2025 की दौड़ से बाहर हुई ‘लापता लेडीज’, ‘संतोष’ से उम्मीदें बरकरार
आमिर खान और किरण राव की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘लापता लेडीज’ को ऑस्कर 2025 की रेस से बाहर कर दिया गया है। हालांकि, शहाना गोस्वामी की फिल्म ‘संतोष’ अभी भी ऑस्कर की दौड़ में बनी हुई है। यह खबर भारतीय सिनेमा प्रेमियों के लिए एक मिश्रित प्रतिक्रिया लेकर आई है।
‘लापता लेडीज’ को क्यों किया गया बाहर?
‘लापता लेडीज’ को भारतीय दर्शकों के बीच खूब सराहा गया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह फिल्म ऑस्कर की आवश्यकताओं पर खरी नहीं उतर सकी। विशेषज्ञों के अनुसार, फिल्म की कहानी और प्रस्तुतिकरण में वह गहराई नहीं थी, जो अकादमी पुरस्कारों में निर्णायक भूमिका निभाती है।
‘संतोष’ से उम्मीदें बरकरार:
जहां ‘लापता लेडीज’ की यात्रा समाप्त हो गई है, वहीं शहाना गोस्वामी की ‘संतोष’ ने अपनी जगह मजबूत कर ली है। फिल्म को इसकी अनूठी कहानी और प्रभावशाली अभिनय के लिए सराहा जा रहा है। भारतीय सिनेमा के लिए यह फिल्म एक नई उम्मीद के तौर पर देखी जा रही है।
भारतीय फिल्मों का ऑस्कर में सफर:
भारतीय फिल्मों के लिए ऑस्कर तक का सफर हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है। ‘मदर इंडिया’, ‘सलाम बॉम्बे’ और ‘लगान’ जैसी कुछ गिनी-चुनी फिल्में ही इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के करीब पहुंच पाई हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि ‘संतोष’ इस सूची में अपनी जगह बना पाती है या नहीं।
आमिर खान की प्रतिक्रिया:
आमिर खान, जो ‘लापता लेडीज’ के निर्माता हैं, ने कहा कि फिल्म को भारतीय दर्शकों से जो प्यार मिला, वही उनकी सबसे बड़ी जीत है। उन्होंने ‘संतोष’ के लिए अपनी शुभकामनाएं भी दीं और भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की बात कही।
किरण राव का निर्देशन और आलोचना:
किरण राव ने ‘लापता लेडीज’ के जरिए दर्शकों को एक सामाजिक मुद्दे पर सोचने का मौका दिया। हालांकि, कुछ आलोचकों ने फिल्म की स्क्रिप्ट और निर्देशन को औसत बताया। यह फिल्म ग्रामीण भारत में महिलाओं की स्थिति को उजागर करती है, लेकिन इसका प्रस्तुतीकरण ऑस्कर के मानकों पर खरा नहीं उतर सका।
भारतीय सिनेमा और ऑस्कर:
ऑस्कर की दौड़ में भारतीय सिनेमा की भागीदारी हमेशा सीमित रही है। यह समय है कि भारतीय फिल्म उद्योग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान को और मजबूत करे। ‘संतोष’ जैसी फिल्में इस दिशा में एक सकारात्मक कदम साबित हो सकती हैं।
निष्कर्ष:
‘लापता लेडीज’ का ऑस्कर की रेस से बाहर होना भले ही निराशाजनक है, लेकिन ‘संतोष’ ने उम्मीदों को जिंदा रखा है। भारतीय सिनेमा को वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनाने के लिए अधिक मेहनत और बेहतर प्रस्तुतिकरण की आवश्यकता है।