देश के 440 जिलों में बोरिंग का पानी पीने लायक नहीं! केंद्र की रिपोर्ट का खुलासा
देश के 440 जिलों का पानी पीने लायक नहीं
केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) की ताजा रिपोर्ट ने एक गंभीर समस्या को उजागर किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के 440 जिलों के भूजल में ‘नाइट्रेट’ का स्तर तय सीमा से अधिक पाया गया है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। नाइट्रेट का उच्च स्तर मुख्यतः अत्यधिक उर्वरकों के उपयोग और पशु अपशिष्ट के कारण होता है।
20% नमूनों में नाइट्रेट की अधिकता
CGWB की ‘वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट – 2024’ के अनुसार, 20% भूजल नमूनों में नाइट्रेट का स्तर 45 मिलीग्राम प्रति लीटर (WHO और BIS द्वारा निर्धारित सीमा) से अधिक है। यह समस्या उन क्षेत्रों में गंभीर है जहां नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों और पशु अपशिष्ट का अत्यधिक उपयोग किया जाता है।
किन राज्यों में अधिक है नाइट्रेट का खतरा?
- राजस्थान, कर्नाटक और तमिलनाडु: 40% से अधिक नमूनों में नाइट्रेट की सीमा से अधिक मात्रा पाई गई।
- महाराष्ट्र: 35.74% नमूनों में नाइट्रेट अधिक पाया गया।
- तेलंगाना और आंध्र प्रदेश: क्रमशः 27.48% और 23.5% नमूने प्रभावित।
- उत्तर प्रदेश, केरल और झारखंड: नाइट्रेट की समस्या अपेक्षाकृत कम है।
- पूर्वोत्तर राज्य: जैसे अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड में सभी नमूने सुरक्षित सीमा में पाए गए।
अन्य खतरनाक तत्वों की मौजूदगी
- फ्लोराइड और आर्सेनिक का खतरा:
- फ्लोराइड: राजस्थान, हरियाणा, और कर्नाटक में बड़ी समस्या।
- आर्सेनिक: गंगा और ब्रह्मपुत्र के मैदानी इलाकों (पश्चिम बंगाल, बिहार, असम) में प्रमुख।
- यूरेनियम का खतरा:
- राजस्थान और पंजाब के नमूनों में क्रमशः 42% और 30% यूरेनियम संदूषण पाया गया।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
- नाइट्रेट: शिशुओं में ‘ब्लू बेबी सिंड्रोम’ का खतरा बढ़ता है।
- फ्लोराइड: लंबे समय तक संपर्क में रहने से फ्लोरोसिस की समस्या।
- आर्सेनिक: कैंसर और त्वचा रोग का कारण बनता है।
- यूरेनियम: गुर्दे की कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकता है।
समस्या की जड़
2024 में हुई भारी बारिश और अत्यधिक सिंचाई ने मिट्टी में उर्वरकों के नाइट्रेट को गहराई तक पहुंचा दिया। इसके अलावा, लगातार पश्चिमी विक्षोभ और चक्रवातों ने जलस्रोतों को और अधिक प्रदूषित किया।
समाधान की ओर बढ़ते कदम
सरकार और स्थानीय प्रशासन को इस रिपोर्ट के आधार पर भूजल को शुद्ध करने और जल प्रदूषण रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। साथ ही, जल संरक्षण तकनीकों और उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना होगा।