पांच अग्निपरीक्षा से गुजरते हैं नागा साधु? जानें नागा साधुओं का इतिहास

पांच अग्निपरीक्षा से गुजरते हैं नागा साधु? जानें नागा साधुओं का इतिहास
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नागा साधु: तपस्या और त्याग का प्रतीक

नागा साधु हिंदू धर्म की शैव परंपरा से जुड़े हुए साधु होते हैं। महाकुंभ 2025 के अवसर पर नागा साधुओं की दीक्षा प्रक्रिया चर्चा का विषय बनी हुई है। नागा साधु बनना आसान नहीं होता। इसके लिए कठोर तपस्या, त्याग और अनेक परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। आइए जानते हैं कि नागा साधु बनने की प्रक्रिया और उनसे जुड़ी अनोखी परंपराओं के बारे में।


नागा साधु बनने की प्रक्रिया

नागा साधु बनने के लिए व्यक्ति को कई कठिन चरणों से गुजरना होता है। इसमें सबसे पहले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी जाती है। इसके बाद 3 साल तक गुरु की सेवा करनी होती है, जिसमें उसे धर्म, दर्शन और कर्मकांड की शिक्षा दी जाती है।

चोटी कटाई और पिंडदान

दीक्षा के दौरान व्यक्ति की चोटी काटी जाती है। यह प्रतीक है कि अब वह सामाजिक जीवन से पूरी तरह अलग हो चुका है। पिंडदान के माध्यम से उसे सांसारिक बंधनों से मुक्त किया जाता है।

तंग तोड़ प्रक्रिया

तंग तोड़ नागा साधु बनने की सबसे कठिन प्रक्रिया मानी जाती है। इसमें एक नागा साधु दूसरे को दीक्षा देता है। यह अंतिम परीक्षा होती है जिसके बाद व्यक्ति को नागा साधु घोषित किया जाता है।


दिगंबर और अवधूत प्रक्रिया

नागा साधु बनने की अंतिम प्रक्रिया में व्यक्ति को दिगंबर या श्रीदिगंबर के रूप में चुना जाता है।

  • दिगंबर साधु: यह साधु केवल एक लंगोट पहन सकता है।
  • श्रीदिगंबर साधु: इन्हें बिना वस्त्र के रहना होता है।

अवधूत प्रक्रिया

इस प्रक्रिया में व्यक्ति को जनेऊ संस्कार, 17 पिंडदान और दंडी संस्कार से गुजरना होता है। इसके बाद वह रातभर “ॐ नमः शिवाय” का जाप करता है।


महाकुंभ 2025 में नागा साधु दीक्षा

महाकुंभ 2025 में नागा साधु बनने की प्रक्रिया 17 जनवरी से शुरू हुई। 19 जनवरी को दीक्षा पूर्ण होगी, जिसमें नए साधुओं को दिगंबर रूप में स्वीकार किया जाएगा। इस दौरान लगभग 1800 साधु नागा बनाए जाएंगे, जिनमें सबसे अधिक जूना अखाड़े से होंगे।


नागा साधुओं का महत्व और जीवनशैली

नागा साधु अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं और पूर्ण रूप से त्याग का जीवन जीते हैं। वे हिमालय, जंगल, और आश्रमों में कठिन तपस्या करते हैं। नागा साधु बनने के बाद व्यक्ति समाज में लौट नहीं सकता। उनके अस्त्र-शस्त्र और डमरू उनकी पहचान होते हैं।


नागा साधु बनने की चुनौतियां

  • गंगा में 108 डुबकी: दीक्षा के दौरान साधु को गंगा में 108 डुबकी लगानी होती है।
  • 24 घंटे तपस्या: बिना भोजन और पानी के 24 घंटे तपस्या करनी होती है।
  • सांसारिक बंधन तोड़ना: दीक्षा के बाद साधु को सामाजिक बंधनों से पूरी तरह मुक्त होना पड़ता है।

महाकुंभ में नागा साधु: मुख्य आकर्षण

महाकुंभ में नागा साधुओं का शाही स्नान मुख्य आकर्षण होता है। वे नग्न अवस्था में, शरीर पर भस्म लगाए, डमरू बजाते हुए स्नान करते हैं। उनकी साधना और तपस्या सभी को आकर्षित करती है।


निष्कर्ष

नागा साधु बनना न केवल कठिन तपस्या का प्रतीक है, बल्कि यह त्याग और धर्म के प्रति असीम निष्ठा को भी दर्शाता है। महाकुंभ 2025 में नागा साधुओं की दीक्षा प्रक्रिया और उनका जीवन एक प्रेरणा है। यह हिंदू धर्म की परंपरा और साधु जीवन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।