खदान में फंसे मजदूरों की भयावह कहानी
दक्षिण अफ्रीका की बफेल्सफोंटेन गोल्ड माइन में फंसे सैकड़ों मजदूरों की कहानी पूरी दुनिया को झकझोर रही है। कई महीनों तक इस खदान में फंसे रहने के बाद जो सच सामने आया है, वह किसी भी इंसान की रूह कंपा सकता है। भूख और प्यास से बेहाल इन मजदूरों को जिंदा रहने के लिए अपने ही साथियों के शरीर के अंग खाने पड़े।
कैसे फंसे मजदूर?
यह घटना तब शुरू हुई जब पुलिस ने पिछले साल इस अवैध खदान के खिलाफ अभियान चलाया था। इसके बाद प्रशासन ने खदान के सभी प्रवेश द्वारों को बंद कर दिया, जिससे लगभग 2000 खनिक वहां फंस गए। इनमें से कई मजदूर बाहर आ गए, लेकिन सैकड़ों अंदर ही रह गए और धीरे-धीरे उनके लिए हालात बदतर होते चले गए।
भूख और मौत के बीच जिंदा रहने की जद्दोजहद
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पुलिस और अधिकारियों ने जानबूझकर वहां फंसे मजदूरों के लिए खाने-पीने की आपूर्ति को रोक दिया। शुरुआत में कुछ दिन तक मजदूरों ने जंगली पौधों और कीड़े-मकोड़ों पर जिंदा रहने की कोशिश की, लेकिन जब कोई रास्ता नहीं बचा तो उन्होंने अपने मृत साथियों के शरीर को खाना शुरू कर दिया। यह एक ऐसी भयावह स्थिति थी, जिसे सुनकर ही रूह कांप उठे।
324 मजदूरों को बचाया गया, 78 की मौत
कई महीनों बाद जब बचाव कार्य शुरू हुआ, तो अब तक 324 मजदूरों को बाहर निकाला जा चुका है। इनमें से 78 मजदूरों की मौत हो चुकी थी। बचाव अभियान में शामिल अधिकारियों ने बताया कि खदान के अंदर का दृश्य बेहद दर्दनाक था। कई शव सड़ चुके थे और भयंकर बदबू आ रही थी। बचाए गए कुछ मजदूरों ने स्वीकार किया कि उन्होंने जीवित रहने के लिए अपने मृत साथियों को खाना पड़ा।
दक्षिण अफ्रीकी प्रशासन पर उठ रहे सवाल
इस घटना के सामने आने के बाद दक्षिण अफ्रीकी प्रशासन पर कई गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। मजदूर संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने प्रशासन की इस नीति की कड़ी आलोचना की है, जिसमें खनिकों को जबरदस्ती खदान में बंद कर दिया गया था। दक्षिण अफ्रीका के सबसे बड़े ट्रेड यूनियनों में से एक ने इसे “अमानवीय और क्रूर” करार दिया है।
दुनिया भर में आक्रोश
इस घटना की खबर सामने आने के बाद पूरी दुनिया में आक्रोश फैल गया है। सोशल मीडिया पर भी लोग दक्षिण अफ्रीकी प्रशासन की आलोचना कर रहे हैं। कई मानवाधिकार संगठनों ने इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।
अब आगे क्या होगा?
सरकार ने इस घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं, लेकिन अब तक इस भयावह नरसंहार के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है। बचाए गए मजदूरों को चिकित्सा सहायता दी जा रही है, लेकिन उनकी मानसिक स्थिति बेहद गंभीर बताई जा रही है।
यह दर्दनाक घटना दिखाती है कि किस हद तक इंसान जिंदा रहने के लिए जा सकता है। यह प्रशासन की नाकामी का भी एक बड़ा उदाहरण है, जिससे सैकड़ों जिंदगियां बर्बाद हो गईं। अब देखना होगा कि इस मामले में न्याय मिलेगा या नहीं।