सुप्रीम कोर्ट का सरकारों को फ्री कल्चर पर फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को उन योजनाओं पर कड़ी फटकार लगाई है, जिनमें मुफ्त में पैसा या सुविधाएं देने का वादा किया जाता है। न्यायालय ने सवाल उठाया कि जब मुफ्त योजनाओं के लिए पैसा है, तो जजों के वेतन और पेंशन में बाधा क्यों आ रही है।
मुफ्त योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
मंगलवार को न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि राज्य चुनावों के समय मुफ्त योजनाओं की घोषणा करते हैं, लेकिन जब जजों के वेतन और पेंशन की बात आती है, तो वित्तीय समस्याओं का हवाला देते हैं। कोर्ट ने कहा, “जो लोग कोई काम नहीं करते, उनके लिए पैसा है, लेकिन जजों के लिए नहीं। यह चिंताजनक है।”
दिल्ली चुनाव और फ्री योजनाओं का वादा
दिल्ली में चुनावी बिगुल बज चुका है। आम आदमी पार्टी (AAP) ने ‘महिला सम्मान योजना’ के तहत महिलाओं को हर महीने ₹2100 देने का वादा किया है। कांग्रेस ने ‘प्यारी दीदी योजना’ के तहत ₹2500 देने का ऐलान किया है। सुप्रीम कोर्ट ने इन घोषणाओं पर अप्रत्यक्ष टिप्पणी करते हुए कहा कि चुनावी लाभ के लिए मुफ्त योजनाओं को प्राथमिकता दी जा रही है।
जजों के वेतन और पेंशन का मामला
यह टिप्पणी अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ द्वारा 2015 में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई। सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि उच्च न्यायालय के कुछ सेवानिवृत्त जजों को मात्र ₹10,000 से ₹15,000 की पेंशन मिल रही है। अदालत ने इसे “दयनीय” स्थिति करार दिया।
चुनावी घोषणाओं का प्रभाव
चुनाव के दौरान फ्री योजनाओं की घोषणा राजनीतिक पार्टियों के लिए बड़ा हथियार बन गई है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों ने महिलाओं को हर महीने आर्थिक सहायता देने का वादा किया है। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि अगर राज्य सरकारें इन योजनाओं पर खर्च कर सकती हैं, तो न्यायपालिका के वेतन और पेंशन में कटौती क्यों होती है।
न्यायपालिका की भूमिका पर जोर
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका का सम्मान बनाए रखना सरकारों की जिम्मेदारी है। वित्तीय बाधाओं का हवाला देकर जजों की पेंशन और वेतन को नजरअंदाज करना उचित नहीं है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी राज्यों के फ्री कल्चर पर एक गंभीर सवाल है। जब मुफ्त योजनाओं के लिए धन उपलब्ध है, तो न्यायपालिका के लिए क्यों नहीं? दिल्ली चुनाव के बीच इस विषय पर अदालत की सख्त टिप्पणी से यह मुद्दा और गहरा गया है। ऐसे में देखना होगा कि सरकारें इस पर क्या कदम उठाती हैं।