दिल्ली के यमुना घाट पर इस साल छठ पूजा की तैयारी कर रहे श्रद्धालुओं को एक बड़ा झटका लगा है। दिल्ली हाई कोर्ट ने यमुना घाट पर छठ पूजा आयोजित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने यह फैसला देते हुए इसके पीछे की वजह भी स्पष्ट की है, जो पर्यावरण और जल की गुणवत्ता से जुड़ी चिंताओं को लेकर है।
1. कोर्ट ने दी यह वजह
दिल्ली हाई कोर्ट ने यमुना नदी के पानी की गंदगी और प्रदूषण का हवाला देते हुए पूजा के आयोजन की अनुमति देने से इनकार किया है। कोर्ट ने कहा कि यमुना में बढ़ते प्रदूषण स्तर और नदी के जल में रासायनिक और बायोफ्लूइड की अधिकता के कारण इस वर्ष छठ पूजा के लिए घाटों का उपयोग उचित नहीं होगा।
कोर्ट ने यमुना नदी की सफाई और उसे प्रदूषण मुक्त करने के प्रयासों पर जोर देते हुए कहा कि “नदी के जल में प्रदूषण के कारण किसी भी प्रकार की धार्मिक गतिविधियों से न केवल नदी का और अधिक नुकसान होगा, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक साबित हो सकता है।”
2. श्रद्धालुओं की चिंता
इस फैसले के बाद, यमुना घाट पर पूजा करने की तैयारी कर रहे श्रद्धालुओं में निराशा का माहौल है। बड़ी संख्या में लोग पहले से ही घाट पर पूजा की तैयारियों में जुटे हुए थे और इस फैसले ने उन्हें हैरान कर दिया। कई श्रद्धालुओं ने इस फैसले को अपने धार्मिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा है और अब वे पूजा स्थल के विकल्प तलाशने की कोशिश कर रहे हैं।
3. हाई कोर्ट का आदेश
दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में दिल्ली सरकार और पानी के बोर्ड को भी आदेश दिया है कि वे यमुना नदी को साफ करने के लिए अपनी कार्य योजना को जल्द से जल्द लागू करें। इसके साथ ही, कोर्ट ने निर्देश दिया कि भविष्य में ऐसी पूजा गतिविधियों के आयोजन से पहले नदी की स्थिति का और अधिक गंभीरता से अध्ययन किया जाए।
4. सरकार की प्रतिक्रिया
दिल्ली सरकार ने कोर्ट के फैसले का सम्मान किया है और कहा है कि वे यमुना नदी की सफाई के लिए अपने प्रयासों को और तेज करेंगे। सरकार ने यह भी कहा है कि वे श्रद्धालुओं के लिए वैकल्पिक पूजा स्थल खोजने की दिशा में काम कर रहे हैं ताकि धार्मिक अनुष्ठान जारी रह सकें।
5. नदी प्रदूषण पर फोकस
इस फैसले से यह साफ हो गया है कि दिल्ली में नदी प्रदूषण की समस्या कितनी गंभीर है और इसके कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। यमुना नदी में गिरने वाले अपशिष्ट और कचरे को लेकर कई सालों से विवाद हो रहे हैं। इस साल के फैसले ने एक बार फिर से प्रदूषण नियंत्रण की आवश्यकता को उजागर किया है।