मुंबई हाई कोर्ट ने एक खौफनाक मामले में सजा-ए-मौत को बरकरार रखा है, जिसमें बेटे ने अपनी मां की हत्या कर उसके अंग-अंग को खा लिया था। जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने इस केस को “दुर्लभतम में से दुर्लभतम” करार देते हुए कहा कि दोषी के सुधार की कोई संभावना नहीं है, इसलिए उसकी मौत की सजा कम नहीं की जा सकती है।
मामले का विवरण:
घटना के अनुसार, दोषी ने अपनी मां की निर्मम हत्या की थी और फिर उसके शव के अंगों का नरभक्षण किया था। कोर्ट ने इसे एक अत्यंत गंभीर और समाज के लिए खतरा पैदा करने वाला अपराध बताया। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि इस तरह के अपराध में दोषी को किसी भी प्रकार की रियायत नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह मानवता के खिलाफ है।
दोषी के सुधार की संभावना नहीं:
कोर्ट ने कहा कि यह मामला इतना भयानक और असाधारण है कि इसमें दोषी के सुधार की कोई संभावना नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे अपराधी को समाज में छोड़ा नहीं जा सकता और सजा-ए-मौत इस केस के लिए उचित सजा है।
मृत्युदंड को लेकर हाई कोर्ट का रुख:
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस तरह के अपराध भारतीय समाज की नैतिक और कानूनी सीमाओं को लांघते हैं। कोर्ट ने दोषी की मानसिक स्थिति और किए गए अपराध की गंभीरता पर विचार करते हुए, मौत की सजा को बरकरार रखा।
न्याय की जीत:
यह फैसला उन सभी मामलों के लिए एक कड़ा संदेश है, जहां मानवता और नैतिकता की सीमाएं लांघी जाती हैं। कोर्ट ने अपने फैसले के जरिए यह सुनिश्चित किया कि ऐसे गंभीर और भयानक अपराधों में न्यायिक तंत्र किसी भी प्रकार की नरमी नहीं दिखाएगा।