महाराष्ट्र में ‘दलबदल’ और शरद पवार का ‘बदला’: 1980 की कहानी का पुनरावलोकन
शरद पवार की याद: 1980 का ‘दलबदल’ और विपक्ष का नुकसान
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा-एसपी) प्रमुख शरद पवार ने महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के माढा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए 1980 के चुनावों की घटना को याद किया। पवार ने कहा कि उनकी पार्टी के 58 विधायकों में से 52 ने मुख्यमंत्री एआर अंतुले के नेतृत्व में पाला बदल लिया, जिससे उन्हें विधानसभा में विपक्ष का नेता पद खोना पड़ा।
उन्होंने बताया, “जब मैं विदेश दौरे से वापस लौटा, तब मुझे पता चला कि एक ‘चमत्कार’ हुआ है और 58 में से 52 विधायक दूसरी तरफ चले गए हैं। मैंने कुछ नहीं किया, बल्कि पूरे राज्य में जनता से संपर्क करना शुरू किया और अगले चुनावों में सभी दलबदलू विधायकों को युवा उम्मीदवारों के जरिए हराया।”
‘विश्वासघात करने वालों को सबक सिखाना जरूरी’
83 वर्षीय शरद पवार ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, “जिन लोगों ने विश्वासघात किया है, उन्हें उनकी जगह दिखानी चाहिए। उन्हें सिर्फ हराना नहीं, बल्कि बुरी तरह हराना चाहिए।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मेहनत और जनता के समर्थन से विश्वासघात का जवाब दिया जा सकता है।
2024 का परिदृश्य: राकांपा का विभाजन
हाल ही में अजित पवार के नेतृत्व में आठ विधायक महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार में शामिल हो गए, जिससे राकांपा का विभाजन हो गया।
- निर्वाचन आयोग ने अजित पवार गुट को राकांपा का नाम और ‘घड़ी’ चुनाव चिह्न आवंटित किया।
- शरद पवार गुट को ‘तुरही बजाता हुआ व्यक्ति’ चुनाव चिह्न मिला और इसे राकांपा (शरदचंद्र पवार) नाम दिया गया।
टेक्सटाइल पार्क विवाद: प्रतिभा पवार को रोका गया
पुणे जिले के बारामती में हाई-टेक टेक्सटाइल पार्क में शरद पवार की पत्नी प्रतिभा पवार को परिसर में प्रवेश करने से कथित तौर पर 30 मिनट तक रोका गया।
- सुरक्षाकर्मियों को निर्देश दिया गया था कि रैली की संभावना के चलते किसी को अंदर न आने दें।
- बाद में, गार्ड को निर्देश देकर गेट खोलने की अनुमति दी गई।
- प्रतिभा पवार और सुप्रिया सुले की बेटी रेवती सुले ने पार्क का दौरा किया और महिला श्रमिकों से बातचीत की।
शरद पवार का ‘बदला’ और चुनावी तैयारी
1980 के अनुभव और वर्तमान हालात को जोड़ते हुए पवार ने स्पष्ट किया कि उनकी रणनीति उन नेताओं के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने की है, जिन्होंने पार्टी छोड़कर विश्वासघात किया।
- पवार के बयान से साफ है कि आगामी चुनावों में वह युवा नेताओं को आगे बढ़ाकर दलबदल करने वालों के खिलाफ मजबूत प्रत्याशी खड़े करेंगे।
निष्कर्ष
शरद पवार ने 1980 के अनुभवों को साझा कर न केवल अतीत की कहानी सुनाई, बल्कि वर्तमान परिदृश्य में अपनी रणनीति का संकेत भी दिया। महाराष्ट्र की राजनीति में ‘दलबदल’ और ‘विश्वासघात’ जैसे मुद्दे एक बार फिर चर्चा के केंद्र में हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि पवार अपनी पार्टी और समर्थन आधार को कैसे पुनर्जीवित करते हैं।