म्यांमार की सेना, जिसे तातमाडाव के नाम से जाना जाता है, अब भारत के चाणक्य नीति के दबाव में आ गई है। हाल ही में म्यांमार के आंतरिक मुद्दों और सीमा सुरक्षा को लेकर भारत ने अपनी स्थिति को स्पष्ट किया है, जिससे म्यांमार की सेना बातचीत करने को मजबूर हुई है। इस बदलाव ने चीन के लिए एक झटका भी उत्पन्न किया है, जो इस क्षेत्र में अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
म्यांमार की राजनीतिक स्थिति
म्यांमार में पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक अस्थिरता का दौर जारी है। फरवरी 2021 में सेना ने एक सैन्य तख्तापलट कर लोकतांत्रिक सरकार को गिरा दिया था, जिसके बाद देश में विरोध प्रदर्शनों और संघर्षों की स्थिति बनी हुई है। इस स्थिति ने म्यांमार की सेना को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग कर दिया है, जिससे उन्हें भारत के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने की आवश्यकता महसूस हो रही है।
भारत की चाणक्य नीति
भारत ने चाणक्य नीति के तहत म्यांमार के साथ अपने संबंधों को एक नए दिशा में मोड़ने का प्रयास किया है। इस नीति का उद्देश्य है कि म्यांमार को एक स्थिर और सुरक्षित क्षेत्र में लाया जाए, जिससे कि भारत की सुरक्षा और आर्थिक हितों की रक्षा की जा सके। भारत ने म्यांमार के साथ सीमा सुरक्षा और आतंकवाद पर विचार विमर्श करने के लिए बातचीत की पेशकश की है, जिसे म्यांमार की सेना ने सकारात्मक रूप से लिया है।
चीन को झटका
चीन, जो म्यांमार का एक महत्वपूर्ण सहयोगी है, को इस नए मोड़ से झटका लगा है। चीन ने म्यांमार में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कई प्रयास किए हैं, लेकिन अब भारत की चाणक्य नीति ने उसकी योजनाओं को चुनौती दी है। म्यांमार की सेना की भारत के साथ बढ़ती करीबी से चीन के लिए चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि यह भारत-चीन संबंधों में भी एक नया आयाम जोड़ सकता है।
म्यांमार सेना का रुख
म्यांमार की सेना अब बातचीत की टेबल पर बैठने को मजबूर हुई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे भारत के साथ अपने रिश्तों को फिर से मजबूत करने के लिए तैयार हैं। भारतीय अधिकारियों ने म्यांमार के सैन्य नेतृत्व के साथ लगातार संवाद बनाए रखने का आश्वासन दिया है, जिससे क्षेत्र की स्थिरता को सुनिश्चित किया जा सके।