महाराष्ट्र चुनाव: ‘डॉन के मोहल्ले’ डोंगरी में कौन जीतेगा जनता का भरोसा?
डोंगरी: अंडरवर्ल्ड से सियासत तक
मुंबई के डोंगरी का इलाका, जिसे कभी अंडरवर्ल्ड के गढ़ के रूप में जाना जाता था, आज सियासी मुकाबले का केंद्र बन गया है। यह इलाका मुंबई की मुंबादेवी विधानसभा सीट के अंतर्गत आता है। यहां की राजनीति का रंग बदलने के लिए शिवसेना की शायना एनसी और कांग्रेस के अमीन पटेल आमने-सामने हैं।
डोंगरी, जहां हाजी मस्तान, करीम लाला और दाऊद इब्राहिम जैसे कुख्यात डॉन ने अपना दबदबा बनाया था, अब लोकतंत्र के जरिए अपने नए नेता को चुनेगा।
कौन हैं मुख्य प्रत्याशी?
- शायना एनसी
- शिवसेना प्रत्याशी
- पहले बीजेपी की नेता थीं, अब शिवसेना के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं।
- अमीन पटेल
- कांग्रेस प्रत्याशी
- 2009 से लगातार इस सीट पर जीतते आ रहे हैं।
- 2019 के चुनाव में 23,655 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी।
क्या कहता है डोंगरी का वोटर मूड?
डोंगरी में मुस्लिम बहुल आबादी है, और यहां के मतदाता धर्म और राजनीति के नाम पर बांटने वाली नीतियों से नाराज नजर आए।
- एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा, “हमें ऐसा नेता चाहिए जो हमारे सुख-दुख में साथ खड़ा रहे और काम करे। धर्म के नाम पर बांटना गलत है।”
- डोंगरी के लोग शांत हैं, लेकिन उनकी बातों से लगता है कि उनका फैसला पहले ही हो चुका है।
ओवैसी का क्या होगा प्रभाव?
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम इलाकों में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
- बड़ा सवाल यह है कि क्या ओवैसी यहां के मुस्लिम वोटों में सेंध लगा पाएंगे, या केवल वोटकटुआ बनकर रह जाएंगे।
क्या शायना एनसी बना पाएंगी अपनी जगह?
डोंगरी में कांग्रेस का लंबे समय से दबदबा है, और अमीन पटेल का समर्थन अब भी मजबूत दिखता है।
- हालांकि, शिवसेना की शायना एनसी के लिए यह चुनौती है कि वे स्थानीय मुद्दों और सांप्रदायिक एकता के संदेश के जरिए अपने लिए जगह बना पाएं।
- शिवसेना के लिए यह सीट जीतना मुश्किल लेकिन महत्वपूर्ण है।
मुंबई की राजनीति में डोंगरी की अहमियत
मुंबादेवी विधानसभा सीट का चुनाव परिणाम यह तय करेगा कि मुंबई में कांग्रेस और शिवसेना की ताकत किस तरफ झुकेगी।
- कांग्रेस: लगातार जीत की परंपरा को बनाए रखने का प्रयास।
- शिवसेना: बीजेपी से अलग होकर एक नई छवि बनाने की चुनौती।
- ओवैसी: स्थानीय मुस्लिम मतदाताओं पर प्रभाव डालने की कोशिश।
निष्कर्ष
डोंगरी का चुनावी मुकाबला धर्म, स्थानीय मुद्दों, और सियासी परंपरा के बीच संतुलन का प्रतीक है। फिलहाल, अमीन पटेल का दबदबा स्पष्ट नजर आता है, लेकिन शायना एनसी की रणनीति और ओवैसी के प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। डोंगरी का ‘राजा’ कौन बनेगा, यह तो चुनावी नतीजे ही बताएंगे।