नई दिल्ली – बदलती जीवनशैली और विचारों में अंतर के चलते आज के युवा बुजुर्गों को बोझ समझने लगे हैं। यह चिंताजनक प्रवृत्ति तेजी से उभर रही है, जहां परिवारों में बुजुर्गों की अहमियत कम हो रही है और उनके प्रति युवाओं का रवैया बदलता जा रहा है।
विचारों में अंतर और पीढ़ियों का टकराव
आज के युवा तेजी से बदलती तकनीक और आधुनिक जीवनशैली को अपनाते हुए आगे बढ़ रहे हैं। उनकी सोच और जीवन के प्रति दृष्टिकोण बुजुर्गों से काफी अलग हो गया है। जहां बुजुर्गों के लिए परिवार और परंपराएं जीवन का अहम हिस्सा रही हैं, वहीं युवा पीढ़ी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और करियर को अधिक महत्व देती है। इस विचारधारा के अंतर ने बुजुर्गों और युवाओं के बीच दूरियां बढ़ा दी हैं।
परिवारों में घट रही बुजुर्गों की भूमिका
संयुक्त परिवारों के विघटन और न्यूक्लियर परिवारों की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते बुजुर्गों की भूमिका परिवार में सीमित हो गई है। पहले जहां बुजुर्गों को परिवार का मुख्य स्तंभ माना जाता था, अब उनकी राय और अनुभवों को नजरअंदाज किया जा रहा है। युवा पीढ़ी अपने निर्णयों में स्वतंत्रता चाहती है, जिससे बुजुर्गों को ऐसा महसूस होता है कि उन्हें परिवार में महत्व नहीं मिल रहा।
आर्थिक बोझ की धारणा
बढ़ती महंगाई और जीवन की तेज रफ्तार में बुजुर्गों की देखभाल एक जिम्मेदारी के रूप में देखी जा रही है। आज के युवा अपने करियर और व्यक्तिगत जीवन में इतना व्यस्त हो गए हैं कि उन्हें बुजुर्गों की देखभाल बोझ जैसी लगने लगी है। कई बार उन्हें आर्थिक रूप से भी बोझ माना जाता है, खासकर तब जब बुजुर्गों को नियमित चिकित्सा देखभाल या विशेष सुविधाओं की आवश्यकता होती है।
निगरानी और देखभाल में कमी
एक और चिंताजनक पहलू यह है कि बहुत से युवा अपने बुजुर्गों की उचित देखभाल नहीं कर पाते हैं। उनके पास समय की कमी और करियर की प्राथमिकताओं के चलते बुजुर्गों की जरूरतों को पूरा करना मुश्किल हो जाता है। इस कारण बुजुर्गों को अकेलापन, अवसाद और असुरक्षा की भावना का सामना करना पड़ता है।
समाज को चाहिए पुनर्विचार
विशेषज्ञों का कहना है कि इस बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने के लिए समाज में बुजुर्गों के प्रति सम्मान और उनकी भूमिका को लेकर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। बुजुर्गों के अनुभव और ज्ञान से परिवारों को न केवल सांस्कृतिक धरोहर मिलती है, बल्कि वे नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक भी होते हैं।
सरकार और सामाजिक संगठनों को इस दिशा में पहल करते हुए बुजुर्गों की देखभाल और उनके सम्मान के लिए योजनाएं बनानी चाहिए, ताकि परिवारों में बुजुर्गों को फिर से वह स्थान मिल सके जिसके वे हकदार हैं