डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के बीच एक बड़ा फैसला चर्चा में है। भारतीय मूल के काश पटेल, जो गुजराती समुदाय से आते हैं, को ट्रंप अपनी अगली सरकार में एक अहम भूमिका देने की योजना बना रहे हैं। इस खबर के बाद अमेरिकी खुफिया एजेंसियों में खलबली मच गई है।
कौन हैं काश पटेल?
काश पटेल भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक हैं, जिनकी जड़ें गुजरात में हैं।
- पृष्ठभूमि: काश पटेल ने अमेरिकी खुफिया और सुरक्षा तंत्र में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। वे राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) और रक्षा विभाग में भी काम कर चुके हैं।
- ट्रंप के करीबी: ट्रंप प्रशासन के दौरान, उन्होंने रूस से जुड़े चुनावी हस्तक्षेप और अन्य खुफिया मामलों में ट्रंप का सक्रिय समर्थन किया था।
संभावित नई जिम्मेदारी
सूत्रों के अनुसार, यदि डोनाल्ड ट्रंप 2024 का चुनाव जीतते हैं, तो काश पटेल को नेशनल इंटेलिजेंस के डायरेक्टर (DNI) या अन्य प्रमुख खुफिया पद पर नियुक्त किया जा सकता है।
- डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस: यह पद अमेरिकी खुफिया तंत्र का नेतृत्व करता है और 18 से अधिक एजेंसियों का समन्वय करता है।
- ट्रंप का मानना है कि काश पटेल उनके प्रशासन में खुफिया एजेंसियों में सुधार और पारदर्शिता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
खुफिया तंत्र में क्यों है खलबली?
काश पटेल के कड़े फैसलों और ट्रंप के प्रति वफादारी के चलते अमेरिकी खुफिया तंत्र में कई अधिकारी उनकी संभावित नियुक्ति से चिंतित हैं।
- ट्रंप और खुफिया एजेंसियों का तनाव: ट्रंप के कार्यकाल में खुफिया एजेंसियों के साथ उनके संबंध अक्सर तनावपूर्ण रहे हैं।
- पटेल का दृष्टिकोण: काश पटेल ने कई बार खुफिया एजेंसियों की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठाए हैं, जिससे उनका रूख विवादों में रहा है।
भारतीय समुदाय की प्रतिक्रिया
भारतीय मूल के नागरिक, विशेषकर गुजराती समुदाय, इस खबर को गर्व की नजर से देख रहे हैं।
- समर्थन: भारतीय समुदाय का मानना है कि काश पटेल का यह पद उनकी काबिलियत और ट्रंप के साथ मजबूत संबंधों का प्रमाण है।
- प्रशंसा: गुजराती समाज ने इसे भारतीयों के लिए वैश्विक स्तर पर एक बड़ी उपलब्धि करार दिया है।
विशेषज्ञों की राय
- राजनीतिक विश्लेषक: काश पटेल की नियुक्ति ट्रंप के खुफिया एजेंसियों पर नियंत्रण के इरादे को मजबूत करेगी।
- सुरक्षा विशेषज्ञ: यह कदम अमेरिकी खुफिया तंत्र में नई रणनीति और सुधारों का मार्ग खोल सकता है, लेकिन इससे एजेंसियों के भीतर तनाव भी बढ़ सकता है।