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खालिस्तानी आतंकियों का अड्डा बना कनाडा, फजीहत के बाद भी क्यों ट्रूडो पाल रहे ‘भस्मासुर’, ये रही वजह

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कनाडा में खालिस्तानी आतंकियों की गतिविधियाँ लगातार बढ़ती जा रही हैं, जिससे भारत-कनाडा संबंधों में तनाव बढ़ा है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाल ही में खालिस्तानी मुद्दे पर जो रुख अपनाया है, वह कई लोगों के लिए आश्चर्यजनक है। यह सवाल उठता है कि भारत के साथ अच्छे रिश्तों की बजाय ट्रूडो खालिस्तानी गतिविधियों को क्यों बढ़ावा दे रहे हैं, और क्यों कनाडा एक ‘भस्मासुर’ यानी खुद के ही लिए खतरा पैदा कर रहा है?

कनाडा में खालिस्तानी गतिविधियों का बढ़ता असर

कनाडा में खालिस्तानी आतंकियों के नेटवर्क और समर्थक बढ़ते जा रहे हैं। ये तत्व भारतीय राजनयिकों और भारतीय समुदाय के लिए समस्याएं खड़ी कर रहे हैं। हाल ही में, कनाडा में भारतीय राजनयिकों पर हमले की धमकियाँ, खालिस्तानी झंडे लहराना, और भारत विरोधी प्रदर्शन किए गए हैं। इस बढ़ती सक्रियता ने भारतीय समुदाय को भी चिंतित कर दिया है।

ट्रूडो का समर्थन: वोट बैंक की राजनीति

विश्लेषकों का मानना है कि ट्रूडो की लिबरल पार्टी को कनाडा के पंजाब मूल के सिख समुदाय से खासा समर्थन मिलता है। कनाडा में लगभग 8 लाख भारतीय मूल के लोग हैं, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा सिख समुदाय का है। इस समुदाय में से एक छोटा वर्ग खालिस्तान समर्थक है, जो ट्रूडो की पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण वोट बैंक बन गया है। ट्रूडो की सरकार इस वोट बैंक को बनाए रखने के लिए खालिस्तानी गतिविधियों पर सख्ती दिखाने से बच रही है।

मानवाधिकारों की आड़ में खालिस्तानियों को समर्थन

कनाडा की सरकार, विशेष रूप से ट्रूडो, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की आड़ में खालिस्तानी तत्वों को संरक्षण दे रहे हैं। उनके अनुसार, हर व्यक्ति को अपनी बात कहने का हक है, चाहे वह भारत विरोधी ही क्यों न हो। हालाँकि, यह नीति आतंकवाद और अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध हो रही है।

भारत के साथ रिश्तों में खटास

ट्रूडो की नीतियों के चलते भारत-कनाडा के रिश्तों में खटास आ गई है। हाल ही में कनाडा के दौरे पर गए भारतीय प्रतिनिधियों ने खालिस्तानी गतिविधियों के खिलाफ कदम उठाने का आग्रह किया, लेकिन कनाडाई सरकार की ओर से ठोस कार्यवाही नहीं हुई। इससे भारत सरकार ने अपने अधिकारियों को सुरक्षा कारणों से कनाडा से हटाने पर विचार किया।

‘भस्मासुर’ का खतरा: ट्रूडो की नीतियों का उल्टा असर

ट्रूडो जिस तरह खालिस्तानियों का समर्थन कर रहे हैं, वह उनके ही देश के लिए एक ‘भस्मासुर’ जैसा साबित हो सकता है। खालिस्तानी गतिविधियों को अगर बढ़ावा मिलता रहा, तो कनाडा में आतंकवाद और हिंसा की घटनाओं का खतरा बढ़ सकता है। इसके साथ ही, यह नीतियाँ कनाडा के अंदर ही सांप्रदायिक विभाजन को भी बढ़ावा दे सकती हैं।

कनाडा पर अंतरराष्ट्रीय दबाव

भारत के साथ ही अन्य देशों ने भी कनाडा से आतंकवादी गतिविधियों पर सख्ती से कार्रवाई करने का आग्रह किया है। संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस नीति की वकालत की है। अगर ट्रूडो सरकार ने जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कनाडा की छवि के लिए नुकसानदायक हो सकता है।